क्या हम सुरक्षित हैं ....
ये एक ऐसा प्रश्न है जो हर तबके के लोगों के मन में कोलाहल मचा जाता है। आतंकवाद हो; क्षेत्रवाद हो या फिर 16 दिसम्बर को घटी अमानवीय घटना। क्या हम इस कदर गिर चुके हैं या हमारा मानव इस कदर ख़त्म हो चुका है कि उस लड़की की दिल दहलानेवाली चीख ने भी दोषी के मन को नहीं झकझोरा होगा!
मर्यादा पुरूषोत्तम राम की धरती ने शायद अपने पुरुषार्थ को खो दिया है। मानवता का इस कदर पतन, क्या गाँधी का यही परिकल्पित रामराज्य है!
'यत्र नारी पूज्यते रमन्ते तत्र देवता'
ये श्लोक हम छठी-सातवीं कक्षा में पढ़ते हैं, भावार्थ सहित कंठस्थ भी कर जाते हैं पर क्या वास्तविक जीवन में अपना पाते हैं। इसका मापदण्ड तो 16 दिसम्बर की घटना से ही ज्ञात होता है। शब्दों को सीखने की नहीं उनको अपनाने की जरुरत है। वक़्त है कि हम अपने रोजमर्रा की ज़िन्दगी से बाहर झाँकें और कुछ वक़्त अपने अन्दर गुम होते हुए मानव के लिए निकालें।
ये हमारे देश की पहली घटना नहीं, न जाने ऐसे सैकड़ो घटनाएँ लगभग हर एक थाने की पुलिस फ़ाइल में दबीं पड़ी होगी और हर घटना के बाद हम जागते हैं मौन,शोक, कैंडल मार्च, धरना, रैली पे उतर जाते हैं... इसमें कोई दोमत नहीं कि इनसे सरकार का तख्ता थोड़ा हिल तो जाता है पर क्या हमें कोई ठोस समाधान मिल पाता है!
दुष्यंत कुमार के ये शब्द आज भी कितने सार्थक जान पड़ते हैं:
"आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए। "
ये एक ऐसा प्रश्न है जो हर तबके के लोगों के मन में कोलाहल मचा जाता है। आतंकवाद हो; क्षेत्रवाद हो या फिर 16 दिसम्बर को घटी अमानवीय घटना। क्या हम इस कदर गिर चुके हैं या हमारा मानव इस कदर ख़त्म हो चुका है कि उस लड़की की दिल दहलानेवाली चीख ने भी दोषी के मन को नहीं झकझोरा होगा!
मर्यादा पुरूषोत्तम राम की धरती ने शायद अपने पुरुषार्थ को खो दिया है। मानवता का इस कदर पतन, क्या गाँधी का यही परिकल्पित रामराज्य है!
'यत्र नारी पूज्यते रमन्ते तत्र देवता'
ये श्लोक हम छठी-सातवीं कक्षा में पढ़ते हैं, भावार्थ सहित कंठस्थ भी कर जाते हैं पर क्या वास्तविक जीवन में अपना पाते हैं। इसका मापदण्ड तो 16 दिसम्बर की घटना से ही ज्ञात होता है। शब्दों को सीखने की नहीं उनको अपनाने की जरुरत है। वक़्त है कि हम अपने रोजमर्रा की ज़िन्दगी से बाहर झाँकें और कुछ वक़्त अपने अन्दर गुम होते हुए मानव के लिए निकालें।
ये हमारे देश की पहली घटना नहीं, न जाने ऐसे सैकड़ो घटनाएँ लगभग हर एक थाने की पुलिस फ़ाइल में दबीं पड़ी होगी और हर घटना के बाद हम जागते हैं मौन,शोक, कैंडल मार्च, धरना, रैली पे उतर जाते हैं... इसमें कोई दोमत नहीं कि इनसे सरकार का तख्ता थोड़ा हिल तो जाता है पर क्या हमें कोई ठोस समाधान मिल पाता है!
दुष्यंत कुमार के ये शब्द आज भी कितने सार्थक जान पड़ते हैं:
"आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए। "
Suggest what can it be done to make our society safer... we need sincere suggestions & implementations
ReplyDeleteIts not like a mathematical sum in which you can use BODMAS or Pythogoras theorem and you will get an exact answer. If you would have read the blog carefully you must have got some suggestions already.
Deletenice work done....it really strikes the reader.
ReplyDeleteI agree with Aditya...please be specific and exactly mention the solution which will create awareness among readers about something....otherwise articales are coming everyday since that happened.
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