Sunday, 25 January 2015

आत्मावलोकन

वो अर्द्धनंग सा
आधा अधूरा
खोजता अपना सत्य मुझ में

सिखाये ऐसे की
कितनी ही कहानी लपेटूँ
मैं सोचती,
मैं कौन
उसका सत्य या अपना अस्तित्त्व

कहता सदियोँ की पहचान
आया वो याद दिलाने
सिद्धार्थ की भटकन को
एक बुद्ध बनाने

मैं तो अज्ञानी
कहाँ ढूँढूँ उस सुजाता को,
वो कहता सब तुझमें है
झाँक अपने अंदर 
ले देख खड़ा है तेरा केवट
तुझको पार लगाने …


No comments:

Post a Comment