वो अर्द्धनंग सा
आधा अधूरा
खोजता अपना सत्य मुझ में
सिखाये ऐसे की
कितनी ही कहानी लपेटूँ
मैं सोचती,
मैं कौन
उसका सत्य या अपना अस्तित्त्व
कहता सदियोँ की पहचान
आया वो याद दिलाने
सिद्धार्थ की भटकन को
एक बुद्ध बनाने
मैं तो अज्ञानी
कहाँ ढूँढूँ उस सुजाता को,
वो कहता सब तुझमें है
झाँक अपने अंदर
ले देख खड़ा है तेरा केवट
तुझको पार लगाने …
आधा अधूरा
खोजता अपना सत्य मुझ में
सिखाये ऐसे की
कितनी ही कहानी लपेटूँ
मैं सोचती,
मैं कौन
उसका सत्य या अपना अस्तित्त्व
कहता सदियोँ की पहचान
आया वो याद दिलाने
सिद्धार्थ की भटकन को
एक बुद्ध बनाने
मैं तो अज्ञानी
कहाँ ढूँढूँ उस सुजाता को,
वो कहता सब तुझमें है
झाँक अपने अंदर
ले देख खड़ा है तेरा केवट
तुझको पार लगाने …
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