Saturday, 15 June 2013

अवशेष यादें...

यादें हैं की दम तोड़तीं नहीं
दर्द है की मुँह मोड़ता नहीं
हर रोज यही ख्याल आता है
दरवाजे पे हुई दस्तक से
तेरा नाम जेहन में आता है

ये सिलसिला वर्षों से चलता आया है
हर शाम तेरे इंतज़ार में संजोया है
इतनी बेरुखी से मुँह मोड़ने वाले
तुझे रुखसत भी न कर सके
क्योँकि तुझे अपनी पहचान में पाया है

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