Saturday, 15 June 2013

ऐ ज़िन्दगी

ज़िन्दगी तुझसे बस इतनी सिफ़ारिश है
दर्द की आहट पर सुकून की चादर बिछा देना



अवशेष यादें...

यादें हैं की दम तोड़तीं नहीं
दर्द है की मुँह मोड़ता नहीं
हर रोज यही ख्याल आता है
दरवाजे पे हुई दस्तक से
तेरा नाम जेहन में आता है

ये सिलसिला वर्षों से चलता आया है
हर शाम तेरे इंतज़ार में संजोया है
इतनी बेरुखी से मुँह मोड़ने वाले
तुझे रुखसत भी न कर सके
क्योँकि तुझे अपनी पहचान में पाया है

Tuesday, 4 June 2013

बस चलना कब सफ़र है ...

सोच कर कभी चले नहीं
कदम थे कि राहें बनातीं गयीं
आज जब पलट  कर देखा
तो काफी दूर निकल आये हैं
दोष किसको दूँ
दर्द के उन थपेड़ो को
या फिर
मंजिल की ओर भागते
बेहोश पैरो को

अब लौटना तो मुमकिन लगता नहीं
मंजिल का भी कोई निशाँ मिलता नहीं
अब लगता है शायद
हमने रास्ता ही गलत चुना
चलो यहीं एक अपनी दुनिया बसा लें
कल शायद किसी भटके को पनाह मिल जाए