Tuesday, 26 February 2013

Humari Chuppi

Apne himmat ki itni maan rakhna
Saamne maut ho phir bhi seene mein jaan rakhna
Waqt ke rukh ko hum mod hi lenge
Aankhon mein bas apne armaan rakhna...

Duniya ke daao-pench humaara kya bigaarenge
Ek ek chehre ka humein bhaan hai
Bas waqt ka takaaja hai warna
Humaare chuppi mein bhi kai jabaan hai...

Tuesday, 12 February 2013

आओ रिश्तों को सम्भालें

कभी मैंने पढ़ा था - 'इन्सान हर दिन कुछ सीखता है'।
आज सुबह मुझे यह खयाल तब आया जब मैं कॉफ़ी की पहली सिप लेते हुए खिड़की से उगते हुए सूरज को देख रही थी।
सूरज की गर्मी शरीर को महसूस होने लगी थी। कॉफ़ी की सिप के साथ विचार भी उमड़ने लगे थे। क्या सीखा मैंने आज! अकेले कॉफ़ी की सिप लेते हुए मेरी निगाह पड़ी भागती हुई ज़िन्दगी की तरफ। इतनी तेजी से गाड़ियाँ दौड़ रहीं थीं। मानो आज नहीं गए तो ज़िन्दगी रुक जायेगी। भौतिकता की होड़ हम पर इस कदर परिलक्षित हो गयी है की हमें कुछ और याद भी नहीं होता। सुबह ऑफिस; शाम को घर, लौटते लौटते हम अपनी प्राथमिकता भूल जाते हैं या यूँ कहें कि वो एक जगह से दूसरी जगह शिफ़्ट हो जाता है। हमने तो अपनी मॉर्निंग वाक को भी रेस बना दिया है, आज की युवा पीढ़ी इस केटेगरी में ज्यादा मात्रा में शामिल है। रिश्तों की अहमियत क्या हम यूथ को समझ नहीं आता ...
अगर इस विषय की जड़ तक देखा जाए तो इनमें इनकी गलती नहीं है। इस गतिशील दुनिया में लोग प्रथम आने की होड़ में इस कदर जुड़े होते हैं की उनको ये भी एहसास नहीं होता की साथ चलने वाला कोई अपना है।

ज्यादातर युवाओं को यह लगता है की हम क्यूँ बदलें, हम अच्छे हैं, आइ ऍम बेस्ट। नो डाउट वो बेस्ट होते हैं पर बदलाव अगर जरुरी हो तो हमें उसे स्वीकार करना जरुरी होता है ...

अधिकांशतः ब्रेक-अप , डिवोर्स इन सबके पीछे यही कारण होता है। रिलेशन स्मूथ नहीं हो पाता, चाहे वो दोस्तों के साथ हो या अपने परिवार वाले।
हम भूल जाते हैं की वो भी हमारी ख़ुशी चाहते हैं। हमारी मंज़िल एक होती है बस रास्ते थोड़े अलग होते हैं। हम खुद को इस बुरे तरीके से उलझा लेते हैं और सोचते हैं की ऍम ग्रूमिंग माइसेल्फ। यह कैसा ग्रूम अप होना है ... चलो मान लो ग्रूम अप हो भी गए, रेस में फर्स्ट आ भी गए तो भी कोई अपना होना चाहिए जो आपके जश्न में शामिल हो सके, प्राउडली कह सके 'येस यू डिड इट'।
इन्हीं सब सोच में भटक रही थी की तभी एक आवाज ख़ामोशी चीरती हुयी मेरे कानों तक आई
 'आर यू ओके? कॉफ़ी ठंढी हो गयी'।
मैंने लम्बी साँस लेते हुए कहा अब ओके है।
 शायद ये शब्द उसके लिए नहीं थे मेरे लिए ही थे। मेरी सीख जो मुझसे कह रही थी की मैं अपने रिश्तों को संभाल कर रखूँगी।
आप भी अगर इस भागती हुयी दुनिया का हिस्सा हो चुके हैं तो ... थोड़ा रुकें अपने आस-पास के लोगों को देखें शायद साथ चलनेवाला कोई अपना ही हो। बस फिर क्या साथ कर लें उनको और देखें किस कदर ये भागती दुनिया में आपको हर पल सुकून मिलता है।